मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक बार फिर नाम बदलने को लेकर राजनीति गरमा गई है। इस बार मुद्दा है हमीदिया अस्पताल का नाम बदलने का, जिसे लेकर राज्य के स्वास्थ्य राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल ने पूर्व नवाब हमिदुल्लाह खान को ‘गद्दार’ बताते हुए सार्वजनिक संस्थानों से उनके नाम हटाने की वकालत की है। मंत्री पटेल का आरोप है कि नवाब ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीयों पर गोली चलवाने का समर्थन किया था, जिसमें छह से अधिक लोग मारे गए थे। उन्होंने कहा कि ऐसे व्यक्ति के नाम पर किसी भी सार्वजनिक संस्था का नाम नहीं होना चाहिए। यह बयान तब आया है जब एक दिन पहले भोपाल नगर निगम ने हमीदिया अस्पताल का नाम बदलने का प्रस्ताव पारित किया था।
प्रस्ताव और विरोध: किसने क्या कहा?
शुक्रवार, 25 जुलाई को हमीदिया अस्पताल में अत्याधुनिक सीटी स्कैन और एमआरआई मशीन का उद्घाटन मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा किया गया। उसी के बाद नगर निगम की बैठक में भाजपा पार्षद देवेंद्र भार्गव ने यह प्रस्ताव रखा कि हमीदिया अस्पताल, हमीदिया कॉलेज और हमीदिया रोड के नाम बदले जाएं। उन्होंने तर्क दिया कि इन नामों से उस व्यक्ति को सम्मान मिल रहा है जो स्वतंत्र भारत के खिलाफ था और जिसने अंग्रेजों का साथ दिया। इसके जवाब में कांग्रेस पार्षदों ने जोरदार विरोध दर्ज किया। कांग्रेस का कहना था कि किसी भी सार्वजनिक संस्था का नाम बदलने का अधिकार केवल राज्य सरकार के पास है, न कि नगर निगम के पास। कांग्रेस ने इसे राजनीति से प्रेरित कदम बताया और इसे लोगों के बीच भ्रम फैलाने का प्रयास करार दिया।
कांग्रेस का पलटवार: असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश
कांग्रेस ने भाजपा पर तीखा हमला करते हुए इसे जनता के असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की एक साजिश बताया। मध्य प्रदेश कांग्रेस के मीडिया प्रभारी अभिनव बारोलिया ने कहा कि भोपाल में सड़कों की हालत जर्जर है, बारिश में नालियां ओवरफ्लो हो रही हैं, सफाई व्यवस्था चरमराई हुई है, लेकिन सरकार इन मुद्दों पर कोई काम नहीं कर रही। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा की सरकार हिंदू-मुस्लिम मुद्दों को हवा देकर लोगों का ध्यान बुनियादी समस्याओं से हटाना चाहती है। कांग्रेस नेताओं ने यह भी कहा कि आज जब राज्य में बेरोजगारी, स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और शिक्षा में गिरावट जैसे गंभीर मुद्दे हैं, तब सरकार और भाजपा नेता जनता को नाम बदलने जैसे भावनात्मक मुद्दों में उलझा रहे हैं। कांग्रेस ने इसे पूरी तरह से राजनीतिक स्टंट बताया और जनता से अपील की कि वे असल मुद्दों पर ध्यान दें।
विवाद का सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
इस विवाद ने भोपाल ही नहीं, बल्कि पूरे मध्य प्रदेश में एक नई बहस को जन्म दे दिया है – क्या ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के आकलन के आधार पर संस्थानों के नाम बदले जाने चाहिए? भाजपा इस कदम को “ऐतिहासिक न्याय” बता रही है, जबकि कांग्रेस इसे “सांप्रदायिक ध्रुवीकरण” की कोशिश करार दे रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा विधानसभा चुनावों से पहले जनता की भावनाओं को प्रभावित करने का प्रयास भी हो सकता है। वहीं, समाज के बुद्धिजीवी वर्ग और इतिहासकारों में भी इस पर मतभेद हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इतिहास को वर्तमान की राजनीति के चश्मे से देखना उचित नहीं है, जबकि कुछ इसे सांस्कृतिक पुनर्परिभाषा का हिस्सा मानते हैं।
इस बीच, आम नागरिकों के बीच भी इस मुद्दे को लेकर राय बंटी हुई है। जहां कुछ लोग मानते हैं कि ऐसे नाम बदलने से नई पीढ़ी को अपने गौरवशाली इतिहास से जुड़ने का अवसर मिलता है, वहीं कुछ लोगों का कहना है कि इससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है और सार्वजनिक संसाधनों का अनावश्यक दुरुपयोग होता है। यह भी देखा गया है कि अक्सर नाम बदलने के पीछे भारी प्रशासनिक खर्च और संसाधनों की बर्बादी होती है, जो कि कहीं न कहीं असली विकास कार्यों से ध्यान भटकाने जैसा प्रतीत होता है।