मध्यप्रदेश के चित्रकूट में सड़क की कमी से जूझ रहे ग्रामीण, मरीजों को कंधों पर उठाकर अस्पताल पहुंचाने को मजबूर

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Satna News: ‘तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है,मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है’ कवि अदम गंडवी की ये पंक्तियाँ कोई पुरानी कविता नहीं हैं। बल्कि, ये आज भी भारत के कई गाँवों की रोज़मर्रा की सच्चाई हैं। मध्य प्रदेश के चित्रकूट नगर पंचायत क्षेत्र का वार्ड क्रमांक 15 यानी थर पहाड़ गाँव इसका जीता-जागता उदाहरण है। यहाँ सड़कें न होने के कारण ग्रामीण आज भी मरीज़ों को थैलों या कंधों पर अस्पताल ले जाने को मजबूर हैं।

हाल ही में, गाँव की एक वृद्ध महिला, राजकली, पत्नी स्वर्गीय रामेश्वर सिंह की अचानक तबियत बिगड़ गई। गाँव में सड़कें न होने के कारण एम्बुलेंस नहीं पहुँच सकी। ऐसे में उनके पोते महेंद्र सिंह ने उन्हें कई किलोमीटर तक पथरीले रास्ते पर अपने कंधों पर उठाकर अस्पताल पहुँचाया। रास्ता इतना दुर्गम है कि हर कदम जान जोखिम में डालने वाला है, लेकिन वैकल्पिक व्यवस्था के अभाव में महेंद्र को यह जोखिम उठाना पड़ा।

गर्भवती महिला को कपड़े के थैले में अस्पताल ले गए परिजन

इस गाँव की शोभा मवासी को प्रसव पीड़ा होने पर स्थिति और बिगड़ गई। गाँव में सड़क न होने के कारण परिजन उसे कपड़े के थैले में अस्पताल ले गए। यह दृश्य किसी फिल्म का नहीं, बल्कि व्यवस्था की हकीकत बयां करता है।

अधिकारियों से कई बार गुहार लगाई

ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने कलेक्टर और अन्य अधिकारियों से कई बार गुहार लगाई। कलेक्टर ने खुद गाँव का दौरा किया और जल्द समाधान का आश्वासन दिया, लेकिन कुछ महीने बाद भी स्थिति जस की तस है। लोगों को अब आश्वासन नहीं, बल्कि वास्तविक समाधान चाहिए।

कई सुविधाओं से वंचित ग्रामीण

थर पहाड़ गाँव न केवल सड़कों से, बल्कि स्वास्थ्य केंद्र, पेयजल और शौचालय जैसी आवश्यक सुविधाओं से भी वंचित है। यहाँ के लोगों का दैनिक जीवन एक युद्ध की तरह है, जहाँ उन्हें हर दिन किसी न किसी चुनौती से जूझना पड़ता है।

देवेन्द्र पाण्डेय "संपादक"

ऋषि श्रृंगी मुनि की तपोभूमि सिंगरौली की पावन धरा से निकला. पठन-पाठन से प्यार था लिहाजा पत्रकारिता से बेहतर पेशा कोई और लगा नहीं. अखबार से शुरु हुआ सफर टीवी और डिजिटल मीडिया के माध्यम में जारी है. इस दौरान करीब 14 साल गुजर गए पता ही नहीं चला. Read More
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