मध्य प्रदेश के सतना जिले से सरकारी कार्यप्रणाली का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने सोशल मीडिया पर सबको हैरान कर दिया है। कोठी और उचेहरा तहसील से जारी किए गए दो आय प्रमाण पत्रों ने सरकारी तंत्र की लापरवाही और मजाक को उजागर कर दिया है। कोठी तहसील द्वारा एक मजदूर किसान रामस्वरूप को जारी किया गया प्रमाण पत्र उसकी सालाना आय मात्र 3 रुपये बताता है, जबकि उचेहरा तहसील से संदीप कुमार नामदेव को जारी आय प्रमाण पत्र में शून्य (0) रुपये वार्षिक आय दर्शाई गई है। ये दोनों प्रमाण पत्र वायरल होते ही जनता के बीच चर्चा का विषय बन गए हैं और कई लोग इसे मजाक समझ रहे हैं।
शून्य और तीन रुपये की आय, देश के “अद्भुत गरीब” बने रामस्वरूप और संदीप
आय प्रमाण पत्र के अनुसार रामस्वरूप की मासिक आय केवल 25 पैसे बैठती है, जो कि 21वीं सदी के भारत में एक कल्पनातीत बात लगती है। वहीं संदीप कुमार का ज़ीरो इनकम वाला प्रमाण पत्र भी सरकारी तंत्र पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। दोनों मामलों ने सरकार और प्रशासन की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आम लोग पूछ रहे हैं कि क्या यह प्रशासनिक लापरवाही है या किसी गरीब के साथ किया गया क्रूर मजाक? सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इन दस्तावेज़ों को देखने के बाद लोग कह रहे हैं कि यदि यह सच है तो ये दोनों व्यक्ति शायद देश के सबसे गरीब नागरिक हैं।
कलेक्टर ने तहसीलदार को लगाई फटकार, कार्रवाई के आदेश
मामला मीडिया में आने के बाद जिला कलेक्टर डॉ. सतीश कुमार यश ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए तहसीलदार सौरभ द्विवेदी और लोक सेवा केंद्र के ऑपरेटर को तलब किया है। कलेक्टर ने तत्काल जांच रिपोर्ट सौंपने और मीडिया को जवाब देने के निर्देश दिए हैं। तहसीलदार ने इस मामले को “क्लेरिकल एरर” यानी लिपिकीय गलती बताकर तीन रुपये वाला प्रमाण पत्र निरस्त कर नया प्रमाण पत्र जारी कर दिया है। मगर सवाल यह है कि ऐसी गलती कैसे हो सकती है, जिसमें सिस्टम से बिना किसी सत्यापन के ऐसी जानकारी जनरेट होकर प्रमाणित हो जाती है?
पीड़ित बोले – हमने कोई प्रमाण पत्र बनवाया ही नहीं
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जब रामस्वरूप से इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने साफ कहा कि उन्होंने कोई प्रमाण पत्र बनवाया ही नहीं है। ऐसे में मामला और ज्यादा उलझ गया है। आखिर बिना किसी आवेदन के प्रमाण पत्र कैसे जारी हुआ? क्या यह सरकारी सिस्टम की खामी है या कोई जानबूझकर खेल खेला गया? इससे यह भी सवाल उठता है कि जिन अधिकारियों को अंतिम पंक्ति पर खड़े व्यक्ति को न्याय दिलाने की जिम्मेदारी दी गई है, क्या वे स्वयं व्यवस्था का मजाक बना रहे हैं?