संसद के मानसून सत्र की शुरुआत से पहले ही केंद्र और विपक्ष के बीच सियासी बयानबाज़ी तेज हो गई है। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि विपक्ष के नेता के रूप में राहुल को राष्ट्रविरोधी बयान देने से बचना चाहिए खासकर विदेशी नीति जैसे संवेदनशील मुद्दों पर। रिजिजू ने कहा कि राहुल गांधी अक्सर पाकिस्तान जैसे बयानों से देश की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं।
कांग्रेस का पलटवार: देशभक्ति का सर्टिफिकेट मत दो
रिजिजू के बयान पर कांग्रेस की ओर से जोरदार प्रतिक्रिया दी गई। वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी ने कहा कि राहुल गांधी को देशभक्ति का प्रमाण पत्र देने की जरूरत नहीं है। उन्होंने याद दिलाया कि रिजिजू भी कभी कांग्रेस में थे। प्रमोद तिवारी ने यह भी कहा कि नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे नेता इस परिवार से हैं जिन्होंने देश के लिए त्याग किया है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि रिजिजू की वर्तमान पार्टी की जड़ें अंग्रेजों की चाटुकारिता में रही हैं।
शिक्षा और ज्ञान पर भी तीखा जवाब
रिजिजू ने राहुल गांधी की विदेश नीति पर समझ को लेकर भी सवाल उठाए थे। इसके जवाब में प्रमोद तिवारी ने कहा कि राहुल गांधी के पास दुनिया की जानी-मानी यूनिवर्सिटीज़ से डिग्रियां हैं और वे रिजिजू को तो क्या प्रधानमंत्री को भी विदेश नीति की क्लास दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि रिजिजू को पहले अपने प्रधानमंत्री की जानकारी की परीक्षा लेनी चाहिए।
विपक्ष की भूमिका और लोकतंत्र की मर्यादा
रिजिजू ने आरोप लगाया कि विपक्ष का काम देश को बदनाम करना नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री पर विदेशी नीति को लेकर सवाल उठाना देश के हित में नहीं है। लेकिन विपक्ष का कहना है कि लोकतंत्र में सवाल पूछना ही असली जिम्मेदारी है और यह राष्ट्रविरोध नहीं बल्कि राष्ट्रहित में है।
बयानबाज़ी से जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि संसद सत्र से ठीक पहले इस तरह की बयानबाज़ी का उद्देश्य असली मुद्दों से ध्यान हटाना हो सकता है। जहां देश में महंगाई बेरोजगारी और मणिपुर जैसे संवेदनशील मामले हैं वहीं नेता अब देशभक्ति और राष्ट्रविरोध की बहस में उलझे हुए हैं। जनता इस बहस को कितनी गंभीरता से लेती है यह देखना बाकी है।